जैन धर्म के इतिहास में ऐसा पहली बार होने जा रहा है जब राजस्थान के बाड़मेर के एक जैन दंपति ने एक साथ संथारा लेने का निर्णय लिया. अब उनके चारों ओर णमोकार मंत्र का जाप चल रहा है और समाज के सारे लोग दोनों लोगों की सेवा कर रहे हैं. जानकारी के अनुसार जिले के जसोल गांव के निवासी 83 साल के पुखराज संखलेचा जब अपना हार्ट का ऑपरेशन करा कर लौटे तो उनका खूब स्वागत हुआ लेकिन उसके अगले ही दिन मतलब 28 दिसंबर को उन्होंने संथारा लेने का फैसला लिया. इसके बाद उनकी धर्मपत्नी ने भी 6 जनवरी को संथारा लेने की घोषणा शुरू कर दी. दोनों लोग अन्न-जल का त्याग कर अब भगवान की भक्ति में लीन हो गए है.
क्या है संथारा की प्रथा?
आखिर संथारा होता क्या है? भगवान की भक्ति कर रहे दोनों पति-पत्नी का अब क्या होगा? जैन धर्म में ऐसी मान्यता है कि जब इंसान का अंत निकट हो या फिर उसे लगे कि उसने अपनी जिंदगी भरपूर तरीके से जी ली है तो वो इस संसार से मोह-माया छोड़कर मुक्ति के पथ पर निकल जाता है. यानी धीरे-धीरे मृत्यु की प्रतीक्षा करते हैं. जैन धर्म के कई लोग इस प्रथा का पालन करते हैं. संथारा के पहले चरण में इंसान अपना घर छोड़ भगवान के चरणों में लीन हो जाता है. और धीरे-धीरे अन्न-जल, घर-संसार, परिवार, सारी चीजें छोड़ देता है. और ऐसे ही धीरे-धीरे अपने अंतिम चरण तक पहुंच जाता है और अंत में इस संसार से मुक्ति पा लेता है. मतलब आखिर में उसकी मृत्यु हो जाती है. संथारा को आम भाषा में समाधिमरण भी कहते हैं. और जैन धर्म की लगभग हर प्रार्थना में “मेरा अंतिम मरण समाधि तेरे दर हो” , ये पंक्ति जरूर होती है.
संथारा के दौरान व्यक्ति अपने सारे बंधन, रिश्ते, नाते, बैर, इन सारी चीजों का त्याग कर देता है. इस दौरान परिवार और समाज के लोग इनकी सेवा करते हैं. उन्हें धर्म की बातें सुनाते हैं, भजन सुनाते हैं और उन्हें संबोधित करते हैं. बाड़मेर के पुखराज संखलेचा को लगभग संथारा लिए 18 दिन हो चुके हैं. और उन्होंने अन्न-जल का भी त्याग कर दिया है. बुजुर्ग दंपति के संथारा लेने की बात जब रिश्तेदारों और जैन धर्मावलंबियों तक पहुंची तो बुजुर्ग दंपति के घर मेले जैसा माहौल है. देश भर में निवास कर रहे रिश्तेदार और जैन धर्म के लोग इन दंपति के दर्शनों के लिए उमड़ रहें है.
संथारा को लेकर देश में हो चुका है विवाद
संथारा को लेकर देश में एक बहुत बड़ा विवाद हो चुका है. साल 2006 में निखिल सोनी नाम के शख्स ने इसके खिलाफ याचिका दायर की थी. याचिका में कहा गया था कि संथारा की प्रथा आत्महत्या जैसी ही है और इसे आधुनिक समय में मान्यता न दी जाए. जिसके बाद 2015 में राजस्थान कोर्ट ने संथारा की प्रथा को गैर कानूनी बताया और कहा कि अगर जैन धर्म के लोग मानते हैं कि संथारा से मोक्ष मिलता है तो मोक्ष पाने के और भी रास्ते हैं. जिसके बाद इस फैसले का जमकर विरोध हुआ था और पूरा जैन समाज सड़क पर उतर आया था. जिसके बाद हाई कोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी गई और हाई कोर्ट ने राजस्थान कोर्ट के इस फैसले को खारिज कर दिया था.