कहते हैं कि इतिहास कभी न कभी खुद को दोहराता है. भारत का विभाजन करवाने वाले ब्रिटेन के साम्राज्यवादियों, पीएम क्लीमेंट एटली और वायसराय माउंटबेटेन ने शायद ही कभी ये कल्पना की होगी कि भारत के बंटवारे के मात्र 75 साल बाद एक ऐसा मौका आएगा जब ब्रिटेन के बंटवारे पर गंभीर चर्चा होगी. नियति का न्याय तो ये भी है कि इस बंटवारे को रोकने या मुकम्मल करने की जिम्मेदारी एक हिन्दु्स्तानी मूल और एक पाकिस्तानी मूल के नेता के हाथ में है.
भारत की आजादी के 75 साल बाद आज ब्रिटेन के प्रधानमंत्री भारतवंशी मूल के हिन्दू ऋषि सुनक हैं और ब्रिटेन से अलग होने की मांग कर रहे स्कॉटलैंड के फर्स्ट मिनिस्टर एक पाकिस्तानी मूल के मुस्लिम हमजा यूसुफ हैं. हमजा यूसुफ पिछले सोमवार को ही स्कॉटलैंड के फर्स्ट मिनिस्टर बने हैं. फर्स्ट मिनिस्टर यानी कि वहां का प्रधानमंत्री. मतलब कि स्कॉटलैंड का सर्वोच्च नेता जिनके हाथ में जिनके हाथों में सभी विधायी और कार्यपालिका की शक्तियां होती हैं.
ब्रिटेन का 1947 मोमेंट!
सम्बंधित ख़बरें
ब्रिटेन से स्वतंत्र अस्तित्व की मांग यूं तो स्कॉटलैंड सालों से कर रहा है. हमजा यूसुफ ने चुनाव प्रचार के दौरान सालों पुराने इस स्कॉटिश गुबार और भावनाओं को खूब हवा दी थी और कहा था कि अगर वे चुनाव जीत गए तो वे स्कॉटलैंड को ब्रिटेन से अलग कर स्वतंत्र देश बनाने की दिशा में मजबूत कदम आगे बढ़ाएंगे. हमजा यूसुफ की इस कॉल को लोगों का जोरदार समर्थन मिला और वे निर्वाचित घोषित किए गए. लेकिन जब उन्होंने स्कॉटलैंड को ब्रिटेन से अलग करने के अपने एजेंडे के बारे में ब्रिटिश पीएम से बात की तो ऋषि सुनक ने उन्हें टका सा जवाब दिया और ऐसी किसी भी कोशिश को सिरे से खारिज कर दिया.
ब्रिटेन के मौजूदा हालात की भारत के बंटवारे के दौर से बराबर की तुलना तो नहीं की जा सकती है लेकिन वर्ष 2023 का ये ब्रिटेन हिन्दुस्तानियों को 1946-47 का वो दौर याद दिलाता है जब ब्रिटेन भारत को बांटने के लिए पंच बना बैठा था. मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना और लियाकत अली खान भारत से पाकिस्तान को अलग करवाने के लिए अड़े थे जबकि गांधी-नेहरू और पटेल ऐसे किसी भी प्रस्ताव के खिलाफ थे. आज ब्रिटेन में भी कुछ ताकतें अपने लिए अलग देश की मांग कर रही हैं. पाकिस्तानी मूल का एक स्कॉटिश स्कॉटलैंड को ब्रिटेन से अलग कराना चाहता है जबकि भारतीय मूल का ब्रिटिश पीएम इस देश को बंटने नहीं देने पर अड़ा है. कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने एक ट्वीट कर इस स्थिति की तुलना 1946-47 से की है.
ऐसी है ब्रिटेन की बनावट और बसावट
स्कॉटलैंड ब्रिटेन से अलग क्यों होना चाहता है. ये समझने के लिए हमें पहले ब्रिटेन की बनावट और बसावट को समझना पड़ेगा. पहले ये जानें कि दुनिया के नक्शे पर ग्रेट ब्रिटेन है कहां? ब्रिटेन यूरोपीय महाद्वीप के उत्तर-पश्चिम तट पर बसा हुआ है. यूनाइेटड किंगडम का पूरा नाम यूनाइटेड किंगडम ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन एंड नॉदर्न आईलैंड है. ये चार प्रांतों से मिलकर बना एक देश है. ये देश हैं इंग्लैंड, वेल्स, नॉदर्न आयरलैंड और स्कॉटलैंड. पहले सदर्न आयरलैंड भी ग्रेट ब्रिटेन का हिस्सा था लेकिन 1922 ये एक अलग देश बन गया.
ये देश भले ही एक यूके के कॉमन आइडेंटिटी के तहत एक हों लेकिन हर एक की अपनी एक पहचान हैं और भाषाएं हैं. पूरे यूनाइटेड किंगडम की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है, लेकिन वेल्स की अपनी आधिकारिक भाषा वेल्श है. स्कॉटलैंड में स्कॉटिश बोली जाती है.
चार स्वायत्त क्षेत्रों को मिलाकर बना ब्रिटेन
एक साथ रहने के बावजूद स्कॉटलैंड के नागरिकों में राष्ट्रवादी भावनाएं पनपती रहीं. इसके पीछे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कारण हैं. बता दें कि स्कॉटलैंड पहले एक आजाद मुल्क था. 1603 में वेल्स और स्कॉटलैंड ने इंग्लैंड के साथ मिलकर एक नया देश बनाया जाना मंजूर किया. 1707 में स्कॉटलैंड इंग्लैंड में शामिल हुआ और इस नए देश को ‘यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन’ नाम दिया गया.
तब इंग्लैंड का परचम दुनिया में लहरा रहा था. यही वजह रहा कि सन 1800 में आयरलैंड भी इसमें मिल गया, लेकिन ये राजा और कुलीनों का फैसला था. वहां के लोग इससे खुश नहीं थे. आयरलैंड की राष्ट्रवादी जनता आंदोलन करती रही. भारत की आजादी की तरह यहां भी आयरिश लोगों का अंग्रेजों के खिलाफ हिंसक संघर्ष हुआ. 1922 में आयरलैंड की 26 काउंटीज को मिलाकर रिपब्लिक ऑफ आयरलैंड के नाम से एक अलग देश बना, जबकि नॉर्थ आयरलैंड का हिस्सा ब्रिटेन के साथ ही बना रहा.
स्कॉटलैंड सन 1707 से ब्रिटेन का हिस्सा है. लेकिन 1707 में भी स्कॉटलैंड के राष्ट्रवादियों ने अपने देश की पहचान मिलाकर ब्रिटेन के साथ विलय का विरोध किया. लेकिन स्कॉटलैंड की संसद में यूनियन के समर्थक ज्यादा थे. ये कुलीन वर्ग और व्यापारिक वर्ग के लोग थे. इंग्लैंड के साथ मिलकर इनके हित फल फूल रहे थे. लिहाजा वे इंग्लैंड के साथ शामिल हो गए. स्कॉटलैंड में विद्रोह और आंदोलन हुआ लेकिन इसे कुचल दिया गया.
औद्योगिक क्रांति के दौरान अलग स्कॉटलैंड की मांग धीमी पड़ गई. मगर 20वीं सदी में इसका फिर उभार हुआ. पहले विश्वयुद्ध के बाद आयरलैंड ने अलग देश की मांग को मनवा लिया लेकिन स्कॉटलैंड सफल नहीं रहा. लेकिन मांग जारी रही.
स्कॉटलैंड की अलग संसद, अपनी सरकार लेकिन सीमित अधिकार
1997 में स्कॉटलैंड के लिए अलग संसद की मांग को लेकर जनमत संग्रह कराया गया. इसमें स्कॉटलैंड को कामयाबी मिली. स्कॉटलैंड की अपनी सरकार बनी, 1999 में स्कॉटलैंड की राजधानी एडिनबरा में संसद की पहली बैठक हुई. ग्रेट ब्रिटेन ने स्कॉटिश संसद को स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि जैसे विषयों पर कानून बनाने का अधिकार दिया लेकिन वित्त विदेश नीति, रक्षा जैसे अहम मुद्दे ब्रिटिश संसद के पास ही रहे. इसी संसद के फर्स्ट मिनिस्टर बने हैं हमजा यूसुफ. कहा जा सकता है कि चूंकि स्कॉटलैंड की सरकार संप्रभु सरकार नहीं है, इसलिए यहां के चीफ एक्जिक्यूटिव को प्राइम मिनिस्टर न कहकर फर्स्ट मिनिस्टर कहते हैं.
क्यों स्कॉटलैंड को अलग देश बनाना चाहती है स्कॉटिश जनता
2011 में स्कॉटिस नैशनल पार्टी ने स्कॉटलैंड में बहुमत हासिल किया और स्वतंत्र स्कॉटलैंड की मांग को आगे बढ़ाने लगा. 37 साल के हमजा यूसुफ इसी पार्टी के नेता हैं. 2014 में स्कॉटलैंड को ब्रिटेन से अलग कराने की मांग पर स्कॉटलैंड में एक और जनमत संग्रह हुआ. इस जनमत संग्रह में 45 प्रतिशत जनता ने अलग देश का समर्थन किया जबकि 55 प्रतिशत लोग विरोध में रहे.
इसके बाद मन मसोसकर स्कॉटलैंड को ब्रिटेन में ही रहना पड़ा, लेकिन वहां की राजनीतिक पार्टियां इस आंदोलन को खाद-पानी देती रहीं. इस बार स्कॉटिश नेशनल पार्टी के नेता हमजा यूसुफ ने इस मुद्दे को बढ़ चढ़कर उठाया. हमजा यूसुफ की पूर्ववर्ती फर्स्ट मिनिस्टर निकोला स्टूरजियोन 2022 में ही वादा कर चुकी थीं कि वे अक्टूबर 2023 में अलग स्कॉटलैंड के लिए जनमत संग्रह करवाएंगी.
55 लाख की आबादी के साथ स्कॉटलैंड ब्रिटेन की जनसंख्या का 8 फीसदी हिस्सा है. स्कॉटलैंड को लगता है कि लंदन में बैठकर लिए जा रहे फैसले स्कॉटलैंड के हित में नहीं हैं. 2020 की द इकोनॉमिस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, इंग्लैंड, स्कॉटलैंड का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है. स्कॉटलैंड में बनने वाला 60 प्रतिशत सामान इंग्लैंड में बिकता है, लेकिन स्कॉटलैंड को लगता है कि इसका पूरा फायदा उसे नहीं मिलता है.
हमजा को ऋषि से नहीं मिला ग्रीन सिग्नल
स्कॉटलैंड का फर्स्ट मिनिस्टर बनते ही हमजा यूसुफ ने अपनी पार्टी के एजेंडे के मुताबिक स्कॉटलैंड को अलग देश बनाने के लिए जनमत संग्रह की प्रक्रिया शुरू करनी चाही. इसके लिए उन्होंने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक से बात की. स्कॉटलैंड के फर्स्ट मिनिस्टर की मांग पर ऋषि सुनक ने उनकी इस मांग पर आठ शब्दों का जवाब देते हुए कहा- I think you know our well-established position. यानी की आप इस मुद्दे पर हमारे स्टैंड को अच्छी तरह से जानते हैं.
ब्रिटिश प्रधानमंत्री के कार्यालय ने कहा कि पीएम सुनक हमजा के साथ महंगाई, नौकरी जैसे मुद्दे पर मिलकर काम करने को तैयार हैं. लेकिन जनमत संग्रह पर उनका कोई फोकस नहीं है.
इससे पहले हमजा की जीत पर ब्रिटेन के पीएम ने उन्हें फोनकर बधाई दी थी. लेकिन हमजा ने जब ऋषि सुनक के साथ जनमत संग्रह का मुद्दा उठाया तो पीएम सुनक ने समझाते हुए कहा कि ऐसा करना स्कॉटलैंड के लोगों की मुख्य प्राथमिकताओं से ध्यान भटकाना होगा. इन प्राथमिकताओं में महंगाई में कमी, स्वास्थ्य सुविधाओं को दुरुस्त करना शामिल है. ब्रिटिश सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि स्कॉटलैंड में वैध जनमत संग्रह की अनुमति देने की उनकी कोई योजना नहीं है.
ऋषि को अपनी इमेज की चिंता
गुलामी के दौर में जब भारत की आजादी की चर्चा ब्रिटेन के तत्कालीन पीएम विंस्टन चर्चिल के पास पहुंची थी तो उन्होंने कहा था कि मैं ब्रिटेन का प्रधानमंत्री इसलिए नहीं बना हूं कि भारत को स्वाधीनता देकर ब्रिटिश साम्राज्य का दिवाला निकाल दूं. इतिहास के इस मोड़ से ऋषि सुनक का भी आमना-सामना हो रहा है. यही वजह है कि ब्रिटिश ताकत और प्रभुता में कटौती से जुड़ा कोई फैसला वे लेने की सोच भी नहीं सकते हैं. सुनक पर भारतवंशी ब्रिटिश होने का एक अतिरिक्त भार भी है. जो उनका आकलन और भी कड़ाई से करता है.
कौन हैं हमजा यूसुफ?
हमजा यूसुफ के दादा-दादी 1960 के दशक में पाकिस्तान से स्कॉटलैंड आए थे. उनके पिता का जन्म पाकिस्तान में हुआ था और उनकी मां का जन्म केन्या में पंजाबी मूल के एक परिवार में हुआ था. ग्लासगो में एक निजी स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा लेने के बाद उन्होंने ग्लासगो विश्वविद्यालय में राजनीति की पढ़ाई की.
पढ़ाई खत्म करने के बाद यूसुफ ने एक कॉल सेंटर में काम किया और फिर पूर्व फर्स्ट मिनिस्टर एलेक्स सैलमंड के सहयोगी बन गए. 2011 में वो ग्लासगो के अतिरिक्त सदस्य के रूप में स्कॉटिश संसद के लिए चुने गए थे. अपनी जीत के बाद यूसुफ ने अंग्रेजी और उर्दू में शपथ ली. अगले ही वर्ष वो स्कॉटलैंड के कैबिनेट में चले गए. फिलहाल वो देश के स्वास्थ्य सचिव के रूप में कार्यरत थे. यूसुफ ने साल 2010 में पूर्व SNP कार्यकर्ता गेल लिथगो से शादी की थी हालांकि, सात सालों बाद दोनों का तलाक हो गया. साल 2019 में उन्होंने नादिया अल नकला से शादी की.